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बाजारवाद | Market-ism Hindi Article

Bazarvad-Hindi Article

जिस भारत में मेहनत की कमाई, आपसी एकता और समता मूलक समाज में संयुक्त परिवार और सांझा चूल्हा का चलन था वही भारत आज कुपोषण और भूखमरी से ग्रस्त है। विवाह शादी में पत्तल और मिट्टी के बर्तन थे, जमीन पर पंक्ति में बैठाकर भोजन परोसने, खादी पहनना भूलकर हम कुम्हार और जुलाहे को समतामूलक समाज से निकालने को आधुनिकता मानते है। अन्न की बर्बादी लोक दिखावा और भ्रष्टाचार से धन कमाना हमें आधुनिकता की दौड़ में आगे बढ़ा रहा है। बाजारवाद ने मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने की प्रथ को जन्म दिया है। भंडारे करने से हमारे पाप छुप जायेंगे की धारणा ने तीर्थ स्थानों को भी पर्यटन स्थल बना दिया है, विवाह को सात जन्मो का साथ मानने वाला भारत तलाक को मांसाहार, शराब सेवन और वेश्यावृत्ति अपना रहा है। भारत के सादा जीवन उच्च विचार को बाजारवाद ने खाओ पियो और मौज करने के हाथों में गिरवी रख दिया है। आज हम इक्कसवीं सदी में जी रहे हैं।

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Hindi Article Lekhak Ki Lekhni
लेखक - श्री जगदीश बत्रा लायलपुरी 
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