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छत्तीसगढ़ स्थापना के उन्नीस बरस | Hindi Articles

establishment of Chhattisgarh hindi article
छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस 1 नवंबर 
 हमारे देश में भावनात्मक रूप देखा जाता रहा है, भावनाओं के साथ लोग जुड़ते रहे हैं और भावनाओं के बदलते ही सरकारें जाती रहीं हैं।

छत्तीसगढ़ गठन के समय, सरकार का गठन मध्यप्रदेश से अलग होकर हुआ। उस समय मध्यप्रदेश और अलग छत्तीसगढ़, दोनों जगहों पर कांग्रेस की बहुमत थी। मध्यप्रदेश में दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे और छत्तीसगढ मे अजीत जोगी का मुख्यमंत्री के रूप मे ताज पोशी हुआ।

इस शब्द का इस्तेमाल इसीलिए किया जा रहा है कि, जिन परिस्थितियों में छत्तीसगढ के मुख्यमंत्री का चयन काँग्रेस हाईकमान ने किया था, वह कोई सिटींग एमएलए नहीं थे। जबकि प्रदेश के कई बड़े नेता, जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री एवं पूर्व केन्द्रीय मंत्री सामिल थे, को नये राज्य का प्रथम मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ। मुख्यमंत्री अजीत जोगी को कुल 3 वर्ष का ही समय मिल पाया क्योंकि 3 वर्ष बाद 2003 में विधानसभा का आम चुनाव था।

इस बीच छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री ने विकास के कई काम अपने सरकार के साथ मिलकर करवाए। लेकिन, केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार होने की वजह से यह माना जाता रहा की केंद्र सरकार विकास का काम कराने धन मुहैया करवा रहे हैं इसीलिए छत्तीसगढ़ में विकास हो रहा है।
विधानसभा चुनाव 2003 काँग्रेस के लिए अच्छा नहीं रहा। 90 विधानसभा क्षेत्रों में काँग्रेस बहुमत नहीं ला पाई। राज्य में सरकार, भारतीय जनता पार्टी की बनी और मुख्यमंत्री इस समय के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ रमन सिंह को बनाया गया।

डॉ रमन सिंह लगातार तीन बार मुख्यमंत्री चुने गए। वे अपने नेतृत्व में चुनाव में सरकार बनाने पूर्ण बहुमत लाते रहे। डॉ रमन सिंह के पास विकास की चुनौती, साथ में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का जोर? जो मुख्यमंत्री के दौड़ में सत्ता के साथ प्रतिस्पर्धी स्थिति में थे, संघर्ष करना पड़ा। कभी विधानसभा अध्यक्ष रहे अपने विधायक साथी और कभी सांसद साथी से इनका मुख्यमंत्री पद जाने का खतरा दिखाई देता रहा।
लेकिन, डॉ रमन सिंह विकास के काम भी कराए और चांउर वाले बाबा के रूप में प्रसिद्ध भी हुए। क्योंकि छत्तीसगढ़ धान का उत्पादन करने वाला बड़ा राज्य है। यहाँ पर गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले ग्रामीणों और शहरी परिवारों के लिए योजना लागू की गई, ₹1 किलो, ₹2 किलो चावल देने का प्रक्रिया शुरू किया गया।

हालाँकि यह कार्यक्रम भी केंद्र पोषित था लेकिन डॉ रमन सिंह का नाम कार्यक्रम चलाने वाले मुख्यमंत्री के रूप में प्रचलित रहा। इस बीच केंद्र में कांग्रेस की सरकार बदली लेकिन यहाँ डॉ रमन सिंह को किसी प्रकार की सरकार चलाने में कोई समस्या नहीं आई। राज्य में नक्सली क्षेत्रों में कई हिंसक वारदातें हुई काँग्रेस के कई बड़े नेता नक्सली हिंसा में शहीद भी हुए लेकिन, सरकार विकास के नाम से आगे भी चुनाव जीतती गई।
2018 के विधानसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में काँग्रेस ने भी किसान कर्ज माफी और धान का मूल्य बढ़ाने का एक तुरुप का पत्ता फेंका ; यह छत्तीसगढ़ियों को भा गई और चांउर वाला बाबा अपने नेतृत्व में भाजपा का सरकार पुनः नहीं बना पाये। यहाँ नई सरकार के रूप में विपरीत परिस्थितियों में भी काँग्रेस के भूपेश बघेल मुख्यमंत्री के रूप में उभर कर सामने आए हैं।

हमनें शुरू में जिन भावनात्मक बातों का जिक्र किया था यह छत्तीसगढ़ियों के बीच सहीं साबित हुआ था।
इस समय भी भूपेश बघेल के सामने कई ऐसे बड़े दिग्गज नेता थे जो मुख्यमंत्री के दावेदार थे लेकिन उनके 5 साल के संघर्ष का प्रतिफल रहा जो प्रदेश काँग्रेस अध्यक्ष रहते हुए उनको यह सफलता मिली और यह बात सामने आई कि कोई किसान का बेटा मुख्यमंत्री बना और किसानों के लिए सोचा।
छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश में रहते हुए भी कई राजनीतिक बातें होती रही थी और कई राजनीतिक उठापटक भी होते रहे। 1993 में विधानसभा का चुनाव हुआ, मध्य प्रदेश के पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के समय पंडित श्यामाचरण शुक्ला नेता प्रतिपक्ष थे, लगता था सरकार बनेगी मुख्यमंत्री बनेंगे। 1993 में दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश काँग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहते चुनाव लड़े थे और मुख्यमंत्री चुन लिए गए। उस समय के बाद पंडित श्यामाचरण शुक्ला ने प्रदेश की राजनीति से लगभग तौबा कर लिया और लोकसभा चुनाव लड़कर दिल्ली पहुँच गए। दिग्विजय सिंह दो बार मुख्यमंत्री रहे। इन्ही के कार्यकाल में वर्ष 2000 में जब सरकार छत्तीसगढ़ की बनी तो प्रदेश के एक और दिग्गज नेता विद्या चरण शुक्ला जो पूर्व केंद्रीय मंत्री थे और लगातार लोकसभा चुनाव जीते रहे हैं, मुख्यमंत्री के रूप में कई विधायकों के समर्थन में और प्रदेश की जनता को विश्वास में रखते हुए काँग्रेस हाईकमान के सामने अपनी बात रखे। लेकिन, सफल नहीं हो सके। उस समय पंडित श्यामाचरण शुक्ला और मोतीलाल बोरा पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में काँग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे।
मोतीलाल वोरा मध्य प्रदेश रहते प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे कहीं ना कहीं पंडित श्यामाचरण शुक्ला और अर्जुन सिंह के राजनीतिक विवाद के चलते मोतीलाल वोरा को मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला था। मोतीलाल वोरा एक पत्रकार थे और आज भी एक विद्वान राजनीतिक के रूप में जाने जाते रहे हैं।
अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री रहे उस समय छत्तीसगढ़ में गूटीय राजनीति का संतुलन जोर पर था। जिसमें दुर्ग जिले में इसका असर सबसे ज्यादा देखा जाता रहा। जब शुक्ल बंधुओं के साथ अर्जुन सिंह की राजनीतिक उठापटक देखा जाता रहा। उस समय अर्जुन सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते छत्तीसगढ़ की राजनीति पर अधिक ध्यान देते रहे हैं।

विकास की दृष्टि से छत्तीसगढ़ को देखें तो मध्य प्रदेश रहते काम तो हुए, यहाँ बड़े-बड़े बाँध का सिंचाई के लिए निर्माण हुआ, वहीं भिलाई इस्पात संयंत्र जैसे बड़ी इस्पात कंपनी का आगाज भी हुआ। मध्य प्रदेश गठन के समय प्रथम मुख्यमंत्री बनने वाले पंडित रविशंकर शुक्ल छत्तीसगढ़ से ही आते थे जो पंडित श्यामाचरण शुक्ल और पंडित विद्याचरण शुक्ल के पिता थे शायद यही कारण रहा कि छत्तीसगढ़ में मध्य प्रदेश रहते हुए भी यह उपलब्धि मिली।

छत्तीसगढ़ बिजली, लौहअयस्क और खनिज संसाधनों से परिपूर्ण रहा है। मध्यप्रदेश में रहते यही कहा जाता रहा कि छत्तीसगढ़ का जो विकास होना है वह नहीं हो रहा, नहीं हो सकता और यह बिगुल यहाँ के नेताओं के द्वारा बजाया गया कि छत्तीसगढ़ को अलग राज्य बनाया जाए।

यहाँ एक समय सांसद रहे चंदूलाल चंद्राकर दुर्ग से नेतृत्व करते थे और दिल्ली हाईकमान में कॉंग्रेस में इसकी खूब चलती थी। उस समय दुर्ग जिला भी राजनीति गुटबाजी को लेकर प्रसिद्ध रहती थी। भूपेश बघेल इन्हीं चंदूलाल चंद्राकर के सानिध्य में युवक कांग्रेस से 1990 में अपने राजनीतिक कैरियर का शुरुआत किया था। आज मुख्यमंत्री बनना भूपेश बघेल के लिए कहीं ना कहीं चंदूलाल चंद्राकर का आशीर्वाद ही माना जाता रहा है और वो इस बात को मानते भी हैं।

छत्तीसगढ़ में विकास की सोच छत्तीसगढ़ के सभी नेताओं के पास था लेकिन कुछ चाहते थे छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश के साथ जुड़े रहे और कुछ चाहते थे कि छत्तीसगढ़ अलग हो और पिछड़ों आदिवासियों की राजनीति सफल हो यही कारण रहा कि 2000 में छत्तीसगढ़ अलग होते ही आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग प्रबल हुई और अजीत जोगी मुख्यमंत्री बनाए गए। हालांकि उनकी जाति को लेकर आज तक विवाद होता रहा लेकिन बुद्धिजीवी वर्ग इन्हें राजनीति की दृष्टि से ही देखते रहे।

आज छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री की नई शुरुआत भूपेश बघेल ने की है और सिर्फ छत्तीसगढ़िया ही नहीं पिछड़ा वर्ग, पिछड़ा समाज, ग्रामीण समाज यह इनकी मुख्यधारा में समाया हुआ है तभी तो "नरवा-घुरवा-गरवा-बाड़ी" कार्यक्रम को लेकर यह छत्तीसगढ़ में अपने डंका बजाने निकल पड़े हैं। गौठान कार्यक्रम को देश के 14 राज्यों ने स्वीकार किया है यह बताया भी जा रहा है।

पिछले समय में डॉ रमन सिंह 15 साल मुख्यमंत्री रहे तीन पंचवर्षीय के कार्यकाल में यही माना जाता रहा की ब्यूरोक्रेट्स इनकी सरकार के भूमिका के लिए अहम है उस समय के एक विधायक जो संसदीय सचिव भी रहे वह खुद यह बात बोलते थे कि मुख्यमंत्री के सामने हम अपनी बात रखते हैं और एक आईएएस अधिकारी उस बात को तवज्जो नहीं देता और मुख्यमंत्री भी उस बात को टाल देते हैं। नतीजा यही हुआ कि विधायक अपने क्षेत्र में विकास के लिए भाजपा की सरकार रहते हुए भी संघर्ष करते रहे और अंत में चुनाव भी हार गए। आज परिस्थितियाँ उलट है काँग्रेस के पास दो तिहाई बहुमत है छत्तीसगढ़ में जो विचार यहाँ की काँग्रेस सरकार लाएगी इसे पूरा करने में इनको कोई अड़चन नहीं होने वाली।

क्योंकि बीते हुए दो उपचुनाव को भी काँग्रेस ने ही जीता है। जिसमें से एक भाजपा के पास था। इससे यही माना जा रहा है कि काँग्रेस सरकार का छत्तीसगढ़ में प्रभाव अभी भी बरकरार है।
कुछ समय पहले लोकसभा चुनाव के समय 11 लोकसभा सीटों में भाजपा ने 9 सीटें जीत कर जरूर यह जाहिर कर दिया था कि काँग्रेस का दबदबा अब खत्म हो गया है। लेकिन, विधानसभा उपचुनाव जीतते ही काँग्रेस का मनोबल बढ़ा है। जबकि लोकसभा में 9 सांसदों की जीत भाजपा में मोदी फैक्टर के रूप में देखा जा रहा है।

राजनीति चलती रहेगी लेकिन राज्य कितना अच्छा विकास करेगा यह समय ही बताएगा। क्योंकि, 19 साल के छत्तीसगढ़ में विकास की परिभाषा यदि पढ़ें या देखें तो बहुत सी बातें सामने आएँगी। हमने यहाँ आगे कुछ मुख्य तथ्य पेश किए हैं जिससे यह पता चलेगा कि छत्तीसगढ़ 19 साल में युवा तो हो गया है लेकिन निचले स्तर पर अभी भी प्रशासनिक कसावट की कितनी आवश्यकता है।

छत्तीसगढ़ धान का कटोरा, इस बार कहीं खाली, कहीं अच्छे से भरा हुआ है। धान का कटोरा, तो फसल अच्छी होनी ही चाहिए। तो प्रशासनिक तैयारी शुरू है। फसल कटाई की जानकारी पिछले सालों से इस बार भी मोबाइल के माध्यम से दर्ज होगी।

छत्तीसगढ़ में फसल चक्र परिवर्तन की मांग बरसों से -

धान का कटोरा कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में आज धान की फसल लगाने वाले किसान परेशान है! कारण पानी की कमी? जबकि, दुर्ग और रायपुर संभाग में आधा दर्जन से अधिक छोटे-बड़े बांध है जो सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ही निर्माण किए गये हैं। पर इन बांध के पानी का या तो सिंचिंत क्षेत्रों के लिए सहीं ढंग से इस्तेमाल नहीं हो पाता, या फिर किसी अन्य क्षेत्रों को पानी आबंटित हो जाती हैं? वहीं किसानों के एग्रीमेंट किये खेत सूखे ही रह जाते हैं!!
छत्तीसगढ़ के दुर्ग में कृषक सलाहकार समिति की बैठक आयोजित की गई जिसमें अंचल के प्रगतिशील किसान शामिल हुए। किसानों ने कृषि एवं इससे संबंद्ध विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में राज्य सरकार द्वारा उनके कल्याण के लिए संचालित योजनाओं की खामियों और खूबियों के बारे में विचार-विमर्श किया।
किसानों ने आमदनी दो-गुनी करने के लिए कई सुझाव भी दिए। जैसा कि केंद्र की मोदी सरकार बार-बार यह बात दोहराते रहे हैं।

समिति की बैठक में किसानों ने कहा कि अंचल के किसान रबी के मौसम में धान के बदले दलहन-तिलहन की फसल उगाने की इच्छा रखते हैं। लेकिन, राज्य सरकार को इनके लिए घोषित समर्थन मूल्य पर खरीदी का इंतजाम करना चाहिए। कहा गया, कि धान की फसल में अपेक्षाकृत कम लाभ होने के बावजूद छत्तीसगढ़ के किसान खेती को मूल काम मानते हुए धान की फसल ही उगाते हैं। क्योकि, इसकी खरीदी की समुचित व्यवस्था होती है।

किसानों ने अरहर और टमाटर की फसल का उदाहरण भी दिया। किसानों के पास अत्यधिक उत्पादन होने से अरहर की दाल 60-70 रूपए प्रतिकिलो के हिसाब से बिक रही है जबकि पिछले कई वर्ष यह डेढ़-दो सौ रूपए में बिकी थी। इसी तरह टमाटर का हाल है। किसान के खेत में टमाटर नहीं है तो एक सौ रूपए किलो हो गई। जबकि दुर्ग संभाग में ही जनवरी-फरवरी महीने में सैकड़ो क्विंटल टमाटर को रोड़ के उपर फेंकना पड़ा था।

ऐसी अनिश्चिता के माहौल में परम्परागत किसान जोखिम कैसे ले सकता है। किसानों ने इस विसंगति की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट किया और कुछ सार्थक पहल करने का आग्रह किया।
समिति की बैठक में उपस्थित किसानों ने खेती-किसानी के काम को और ज्यादा फायदेमंद बनाने के विभिन्न उपायों पर खुला विचार-विमर्श किए ; इसमें एक महत्वपूर्ण बात सामने आई कि, किसानों की आमदनी दो-गुनी करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल तभी फलीभूत होगी जब हर खेत को पानी मिलेगी। यहाँ के बांध बनाये तो गये थे कृषि क्षेत्र को सिंचाई कराने के लिए ; लेकिन, इंडस्ट्रीज क्षेत्र के साथ एग्रीमेंट होने की वजह से बांध का पानी किसानों के खेतों तक नहीं पहुँच पाता? जबकि, धान की फसल को अत्यधिक पानी की आवश्यकता होती है। और दलहन-तिलहन का कोई खरीदी विकल्प राज्य सरकार द्वारा नहीं बनाया गया है।
कृषक कल्याण परिषद के उद्देश्य के बारे में कहा गया कि, कृषि से जुड़ी समस्याओं का विभाग के साथ मिलकर समाधान निकालना पड़ेगा। किसानी के काम में उन्नत तकनीकी अपनाने पर जोर दिया जाना चाहिए। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के कुप्रभाव से अवगत कराते हुए जैविक खेती को इसका विकल्प बताया गया। विशेष तौर से दुर्ग जिले के ही अरसनारा के एक किसान की जैविक खेती की दिशा में किए गए प्रयासों की सराहना की गई।

जैविक कीटनाशक स्थानीय तौर पर बनाने की विधिया भी बताई जानी चाहिए। अतिरिक्त आमदनी के रूप में मछलीपालन, डेयरी, बकरीपालन, बतखपालन आदि व्यवसाय अपनाने की दिशा में प्रयास हो।
इन कामों के लिए राज्य सरकार द्वारा काफी अनुदान भी मिलता भी है। लेकिन, इसका सहीं उपयोग हो पाता।

व्यवस्था सुधरे तो किसान की हालात में सुधार होगी।
कल तक जो धान का कटोरा खाली-खाली दिखता था।
आज भी यह कटोरा फसल परिवर्तन कर अनाज से भरा जा सकता है।

धान का समर्थन मूल्य बढ़ाना कितना अच्छा विकल्प है? -

छत्तीसगढ़ के वर्तमान भूपेश बघेल सरकार का गठन उस समय हुआ था जब पिछली धान कटाई का दौर चल रहा था। सरकार आते ही धान की कीमत, घोषणा और वायदा के हिसाब से वितरित की गई। किसान खुशी महसूस करते दिखे। लेकिन, यह खुशी लम्बे वक्त के लिए नहीं कहा जा सकता है। लोगों को आगे भी काम चाहिए, भले ही कृषि से संबंधित हो, गाँव में हों।

लोकसुराज के बाद डर लोकलाज का -
पिछली छत्तीसगढ़ सरकार की महत्वपूर्ण योजना थी, लोकसुराज अभियान पर चिंता रहती थी लोक-लाज की? लोकसुराज अभियान के दौरान मुख्यमंत्री से लेकर पार्टी के विधायक तक ने विकास के वादे और घोषणाएँ किए। इन वादों को पूरा करने की पेचिदगी, यही थी लोक-लाज? कि वादे कितनी जल्दी पूरा करा पायेंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं कि, पिछले 19 वर्षों में छत्तीसगढ़, विकास को लेकर कई आयाम तय किए। लेकिन, जहाँ मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ़ की अपनी अलग छवि दिखी। वहीं, कई क्षेत्र आज भी अविकसित रह गये। 2002 में बनी कई सड़कों का आज तक संधारण नहीं हो सका। हाँ, वहाँ नये जिले की नींव जरूर रखी जा चुकी है। जहाँ बस सुविधा आज तक नहीं मिली।

छत्तीसगढ़ से अलग होने के बाद मध्यप्रदेश के अपने संसाधन बढे़ हैं और आज मध्यप्रदेश आगे बढ़ रहा, यह कहा जाना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी? यह किसी की तारीफ भी नहीं! बल्कि कम संसाधन में समूचे विकास को गति देने की बात है। जबकि, छत्तीसगढ़ में संसाधन की कोई कमी नहीं है। छत्तीसगढ़ में प्रतिवर्ष सरकारी विकास का अलग-अलग तरीके से बखान होते रहा है। पिछले वर्ष तक "लोक-सुराज" अभियान और इस बार गाँधी जी विचार यात्रा। यहाँ भी विकास की घोषणाएँ हुई है।

पर, जनप्रतिनिधिगण क्योंकर कुछ बातें भूल जाते है या सरकारी महकमों से बहुत सी बातें भूला दी जाती है। यहाँ पर लोक-लाज निश्चित ही लोकसुराज या किसी विचार विकास यात्रा के नीचे दब जाती है। हम कुछ बुनियादी चर्चा करते हैं तो यह पाते हैं कि, आज 19 सालों में प्रशासनिक कसावट कमजोर क्यों रही! यह प्रश्न आज भी बना हुआ है?

केंद्र सरकार द्वारा, छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में चलाए जा रहे, गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले प्राथमिकता वाले गरीब ग्रामीण परिवारों के लिए, खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत, प्रति माह राशन मुहैया कराने की योजना। पिछले पाँच सालों से क्यों फेल होती दिखती रही है। जब इनके गहराई पर जाएँ। छत्तीसगढ़ में चिंता इस विषय को लेकर कई बार हुई है। जहाँ दुर्ग जिले के धमधा ब्लाक के अहेरी ग्राम पंचायत में एक ही नंबर के दो राशन कार्ड बना दिए गये थे! जिसमें से एक कार्ड को ही राशन कार्ड की स्वीकृति मिली? अब एक परिवार क्या करे।

उस समय इस परिवार के मुखिया ने प्रत्येक उस कर्मचारी और अधिकारी को इस समस्या से अवगत कराया, सूचना के अधिकार का भी उपयोग किया ; लेकिन, कोई भी संतोषजनक जवाब उन्हे नहीं मिला? ऐसी संवेदनहीनता क्यों! वहीं गलती किसने की ? या कैसे हुई। क्या इसे प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री ठीक करेंगे?
एक बुद्धिजीवी सोच रखने वाला व्यक्ति कहेगा, नहीं। पर सुधारेगा तो वही जो फिल्ड में काम कर रहा है। तो इस फिल्ड के अधिकारी कर्मचारियों की जवाबदेही क्यों नहीं बन रही। क्या प्रशासनिक कसावट कमजोर रही है? या सरकार के मंत्री और अधिकारी, सिर्फ विकास के राशि वितरण करने में लगे रहें हैं।
पी.डी.एस. का यह योजना तो बहुत अच्छा है, और इस पर चर्चा इसलिए करनी पड़ी है कि, कुछ समय पहले, प्रदेश में थोक के भाव से बने राशनकार्डों का पुनरीक्षण किया गया था। और एक ही घर में, अलग-अलग राशन कार्ड बना कर लाभ ले रहे थे, उसे सुधारने का प्रशासनिक प्रयास किया गया था। लेकिन, अब यह योजना फिर भी क्यों फेल होती दिखती रही है।

क्योंकि, कहीं राशन दुकान में राशन वितरण का नियम पंचायत तय करती नजर आई, तो कहीं राशन से अमृत-नमक गायब रहा।

हमने यह भी देखा -

छत्तीसगढ़ के, दुर्ग जिला मुख्यालय से लगभग 40 किमी दूर ग्राम पंचायत भरनी विकासखंड धमधा में पदुमलाल आडिल का 6 सदस्यों वाला परिवार न हि, बोल सकता है और न हि, सुन सकता है। वहीं, परिवार के गुजारे के लिए न, जमीन है और न हि, काम।

एक वर्ष पहले हमने इस परिवार की खबर ली थी तो हमारे सामने यह तथ्य नजर आए थे।
ग्राम पंचायत भरनी में लगभग 20 वर्षो से निवासरत यह अनुसूचित जाति परिवार, पदुमलाल आडिल ( 60) , पत्नी बुतकुवर (55 ) , बेटी कु. गोमती (20), बेटा लाखन (18), जयपाल (16) , एवं छोटी बेटी पिंगला (14) का परिवार, आवास-विहीन किसी भी शासकीय लाभ से वंचित गुजर-बसर कर रहा है। पदुमलाल अपने इस 6 सदस्यो के परिवार के साथ, बड़े बेटे गोपी (27) एवं बहु के घर मे अलग रहते हैं । वहीं, गोपी भी साधारण मुक-बधिर है जो 35 किलोमीटर दूर भिलाई जाकर मिस्री कार्य (मजदूरी ) कर अपना गुजर चलाता है । जिन्हे भी सरकार से कोई मदद नही मिली।

इस परिवार का ग्राम भरनी में मतदाता सूची में नाम, सभी का आधार कार्ड, शासन द्वारा गैस एवं राशन कार्ड क्रमांक - 43020213100716 है। जो, अति गरीब की श्रेणी मे नही आता! अतः मनरेगा का जाॅब-कार्ड नहीं बना है? जो उनके परिवार भरण-पोषन का उपाय होता! स्मार्ट कार्ड नहीं बना है! जो उनके परिवार के स्वास्थ्य जांच का उपाय बनता ? और न हि, खुद का आवास ही है! जो उनके परिवार के रहन-बसन का उपाय होता? 

गोपी को उनके मामा आसकरण के द्वारा, स्वयं के जमीन में घर बना कर दिया गया है। जिसमें गोपी के पिता पदुमलाल का परिवार भी रहता है। जबकि पंचायत द्वारा गोपी और पदुमलाल दोनो से घर टैक्स लिया जाता है! यहाँ गोपी से टैक्स लिया जाना तो ठीक है, लेकिन पदुमलाल से कैसा घर-टैक्स? जिनके नाम से घर है ही नहीं! जबकि गोपी के निवास में शौचालय निर्माण हेतु प्रक्रिया पूर्ण कर दी गई है, जहाँ गड्ढा खोदा गया, गिट्टी, सीमेंट, ईट लाई गयी ; बस निर्माण कार्य के समय ही उक्त जगह को ग्राम पटवारी के निरिक्षण के बाद घास जमीन बतलाकर निर्माण कार्य रद्द कर दिया गया! वहाँ पर अभी गड्ढा तो था, वहीं शेष सामान पंचायत द्वारा उठवा लिया गये थे?

ऐसा नहीं कि, पदुमलाल के परिवार का स्वास्थ्य जांच करवाने का प्रयास नही हुआ, ग्राम सरपंच खेमिन बाई नरेंद्र कुमार पार्वे बतलाते हैं, उनके द्वारा रायपुर अस्पताल एम्स ले जाकर इलाज करवाया गया । जहाँ इन्हे जिला अस्पताल दुर्ग रेफर कर, यहीं से इलाज कराने की सलाह दी गई। जहाँ जिला अस्पताल दुर्ग के डॉक्टरो ने पूर्णतः मुक-श्रवण बाधित नही मानते हुए इलाज की कोई प्रक्रिया नहीं की गई! जहाँ सरपंच बताते हैं, इसके बाद भी जिला अस्पताल में 2 से 3 बार जाकर प्रयास किया गया। परन्तु यह प्रयास भी असफल रहा।
इस परिवार के मुखिया, पदुमलाल एवं उनके साला आसकरण के द्वारा हमें बतलाया गया कि, पदुमलाल के माता-पिता एवं अन्य भाई-बहन सामान्य हैं। वहीं पदुमलाल लाल की पत्नी बुतकुवर सहित इनके दो बहने, सुंदरी बाई जो गांव में ही रहती है। एवं राधा बाई रेंगाकठेरा, जालबांधा ( राजनांदगांव ) भी मुक-श्रवण बाधित हैंं । जबकि, बुतकुवर के माता-पिता और सुंदरी बाई और राधा बाई के बच्चे सामान्य है। इस परिवार का सरकारी तंत्र ने मुआयना तो किया, लेकिन इलाज नहीं किया? जहाँ इस हरिजन (अनुसूचित जाति ) परिवार की संपूर्ण जानकारी, जो यहाँ दी जा रही है। यह सरकार के नुमाइंदो को भी पता है! लेकिन इनके पूर्ण समाधान का उपाय नहीं किया गया?

पंचायत द्वारा परिवार की मुखिया पदुमलाल के नाम से मनरेगा का जाॅब कार्ड बनाया जाना चाहिए था? जो नहीं किया गया! जबकि, पदुमलाल बताते हैं, जब वे और उनकी पत्नी ग्राम पंचायत के मनरेगा कार्य में सामिल होने गये तो उन्हे यह कहकर कि, तुम्हार नाम लिस्ट में नही है! काम से भगा दिया गया? जबकि, 6 सदस्यो के परिवार को पालना कितना मुश्किल है, यह आम जन-मानस के समझ में भी आ सकता है।
पदुमलाल चौथी कक्षा पास है, लकवा ग्रस्त है, सुन नहीं सकता लेकिन, इसरों के माध्यम से लडखडाकर बोल सकता है। पत्नी बुतकुवर और चारो बच्चे नही बोल सकते, और न हि, सुन सकते हैं। वहीं बच्चो की पढ़ाई लिखाई भी स्कूल में नही हो पाई! इस पर शिक्षा विभाग और सरकारी तंत्र ने भी ध्यान नही दिया? पदुमलाल के अनुसार कुछ वर्ष पहले उन्हे लगभग 10 हजार रूपए टेलीविजन हेतु मिला था, जिसे खरीद कर पंचायत ने दिया है। वहीं, अभी गैस कनेक्शन प्राप्त हुआ है। पत्नी बुतकुवर और पांच बच्चे मुक-श्रवण बाधित है, जिन्हे श्रवण यंत्र मिलना था? नहीं मिला! क्या यहाँ, पारिवारिक परम्परा चलती रहेगी! यह भी प्रश्न है?
इस गरीब परिवार पर, जो स्वंय के भरण-पोषण बड़े मुस्किल से कर रही है, इसके ईलाज के लिए सरकारी महकमे का ध्यान कभी नही गया। जबकि, पंचायत विभाग गरीबी-रेखा को ऊपर उठाने "सब के हाथ मे काम" ; शिक्षा विभाग "सबको शिक्षा" दिलाने और स्वास्थ्य विभाग "सबको स्वास्थ्य" - "हमर स्वास्थ्य - हमर हाथ" जैसे कई महती योजनाएँ एवं कार्यक्रम राज्य और केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे है, परंतु इस परिवार पर अभी तक ध्यान नही आया।

इस परिवार की आज क्या स्थिति है? यह हम नहीं जानते। लेकिन, मीडिया जब कोई खबर बनाती है तो इस बात का ध्यान रखती है, खबर सच्ची हो ; और यह है। लेकिन, खबर की सार्थकता तब है, जब सरकार की नुमाइंदगी हो।

- घनश्यामदासवैष्णव बैरागी
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