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राजनीति के इस कालजयी खण्ड की दुर्लभ व्याख्या के प्रति एक दुस्साहस स्वरूप चिंतन | Lekhak Ki Lekhni

Lekhak ki lekhni hindi article

वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य में जो भी व्यक्ति सत्तारूढ़ सरकार के आंतरिक अथवा बाह्य मूल्यांकन के प्रति अपना कोई निजी विचार,चिंतन,मंतव्य,गन्तव्य,मनन, धारणा-अवधारणा एवं किसी भी तरह का वैचारिक प्रयास प्रकट करता है तो उसे राष्ट्रविरोधी या संकीर्ण मानसिकता वाले असामाजिक मानसिक विक्षिप्त की श्रेणी में शुमार कर दिया जाता है । किन्तु यह प्रकट करना अब निश्चित रूप से आवश्यक है । विगत कई कार्यकालों में सत्तारूढ़ सरकारें देश के विकास का विश्वव्यापी स्वरूप तैयार करने में अपनी ऊर्जावान कार्यशैली का परिचय स्पष्ट नही कर पायी हैं । किंतु यह अतिश्योक्ति भी है कि आप उक्त विवेचनाओं के आधार पर वर्तमान की स्थिति को स्पष्ट करने की बजाय पूर्ववर्ती केंद्रीय सरकारों को कटघरे में खड़े करते रहेंगे ।


वर्तमान केंद्रीय सरकार अपनी अदम्य क्षमताओं का विश्वव्यापी प्रदर्शन कर रही है । आज विश्व परिदृश्य में अनेकोनेक उदाहरण ऐसे है जो आज सत्तारूढ़ सरकार की प्रभावशाली विदेश नीति को सिर्फ पीठ थपथपाकर शाबाशी दें यह नाकाफ़ी है । बहुत शीर्ष स्तर पर एक साहसिक नीति को क्रियान्वित किया गया है । यह निहायती जरुरी कदम है जिसे देश को समय रहते उठाना चाहिये था ।

विगत दोनों यूपीए सरकारों के समय ठोस और प्रभावशाली निर्णय सत्ता की दहलीज़ पर चढ़ने से कतराते रहे । इसमें चाहे विदेश नीति,आर्थिक नीति ,ओधोगिक स्थिरता,राजनेतिक समरसता,सामाजिक उन्नयन,सर्वांगीण विकास,ग्रामीण उत्थान ,युवा प्रधान राष्ट्र , महिला सशक्तीकरण , बाल अधिकार जैसे अनन्य ज्वलंत विषय उतने प्रभावशाली नही हो पाये । जितना इकीसवीं शताब्दी के राष्ट्र को उसकी महत्ती आवश्यकता थी । इन कार्यो को आज समय रहते करना अति आवश्यक है ।

सत्तारूढ़ सरकारें मनमर्जी के उदाहरणस्वरूप सामन्तवाद से लेकर लोकतन्त्र तक कोटि कोटि अपने आपको प्रकट करती आयी हैं । उनका लोकतान्त्रिक स्वरूप कच्ची बस्तियों के दुर्गन्धयुक्त वातावरण से निकलकर जैसे ही सत्ता के लाल कालीन से रूबरू होता है । तब से ही लोकतान्त्रिक सरोकारों की शवयात्रा निकलने का क्रम प्रारम्भ हो जाता है ।अपितु वह मार्ग सत्ता के बदचलन पूर्वाग्रह को प्रकट करते हुए जन गण मन के दुविधापूर्ण मुक्ति मार्ग के रूप में परिवर्तित हो जाता है । शमशान घाट की ओर प्रस्थान कर रही शवयात्रा का यह दृश्य अनन्य मांगो और जन भावनाओं को नित्यप्रति मृत होते देखकर इतना कठोर हो चूका है । कि अब जबकि स्वयं हरिश्चन्द्र उस शमशान घाट के चौकीदार है तो वह अपने पुत्र की मृत्यु का भी शुल्क ले रहे हैं । निश्चित रूप से यह एक न्यायपूर्ण निर्णय है । किन्तु यहाँ यह भी सम्मिलित हो जाये की आम जन की देह से अब निर्धनता की गंध धीरे धीरे उच्च कुलीन सामाजिक परिदृश्य को भी प्रभावित कर रही है । यह आगामी भविष्य में न्यायपूर्ण निर्णय के इतर शुल्क में छूट का प्रावधान निर्धारित नही हुआ तो महामारी में भी परिवर्तित हो सकती है । जिससे समग्र समाज एक भीषण गृहयुद्ध की भेंट चढ़ सकता है ।

अब जन सरोकारों की शवयात्रा एक तरह का विद्रोह पैदा कर सकती हैं ।राष्ट्रवाद के इस महायज्ञ में विघ्न भी उतपन्न जो सकता है । झंडाबरदारों से घिरे महानायक को यह निश्चित करना ही होगा कि अब उच्चस्तरीय घटनाओं से पृथक यह जो सर्वहारा वर्ग है इसकी मुक्ति के महायज्ञ की हवनशाला का उदय कब होगा..?सेनापतियों और क्षत्रपों को भूखी अवाम अपने द्रोह से कुचलने का सामर्थ्य हमेशा सुरक्षित रखती है । लोकतंत्र में तो यह अधिकार एक सत्य के रूप में प्रत्येक चुनाव में प्रकट भी हो जाता है । यह समय राष्ट्र के गाँव गली गलियारों से कस्बों शहरों महानगरों तक रियाया के लिये अनेकोनेक रियायतों की बाट जोह रहा है । आज राष्ट्र की उन्नति के उच्चस्तरीय समाधानों के इत्तर एक समाधान यह भी है कि जिस अवाम की आँखे पथरा चुकी हैं अपनी तरक्की की पहेलियां सुलझाते सुलझाते उसे अब बड़ी राहत की दरकार है । आज धुँआ है कल ये आग बनेगी और धीरे धीरे भीषण अग्निकांड मठाधीशों के चरम को ख़ाक कर दें । तो सावधान जो जाइये यह जनता एक ज्वालामुखी है जिसे सत्ताओं को लीलना भी आता है और पालना भी ।



आपका

चन्द्रशेखर त्रिशूल
Shekharexpress@gmail.com
9983094830

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